नमस्ते मित्रों। मेरा नाम मनोहर (उम्र १९) है। मैं कानपुर का रहने वाला हुँ। कुछ दिनों पहले, मैंने अपनी ज़िन्दगी में पहली बार अपना लौड़ा मेरी आँखों के सामने हो रही चुदाई को देखकर हिलाया था।
मेरे पिताजी के कारण मुझे वह अद्भुत अनुभव मिला था। दरअसल हुआ यूँ कि, मेरी माँ ३-४ दिन के लिए अपने मायके गई थी। माँ के मायके जाने के अगले दिन सुबह करीब ०५: ३० बजे मेरे पिताजी घर से चुपचाप निकल गए।
जाने से पहले, अगर पिताजी के हाथ से पानी का गिलास निचे नहीं गिरता, तो मेरी नींद टूटती नहीं थी। मेरे कमरे से बाहर आने तक पिताजी घर से निकल चुके थे। बहुत सवेरे, आदमी के घर से बाहर जाने के कई कारण हो सकते हैं।
जहाँ तक मैं अपने पिताजी को जानता था, वह ज़रूर कहीं पर किसी के साथ रंगरलिया मनाने के लिए निकले थे। पिताजी को मेरी माँ की चुदाई किए बगैर रात को नींद नहीं आती है। इसलिए मुझे पिताजी का पीछा करने का विचार आया था।
मैं घर से बाहर निकलकर देखने लगा कि पिताजी किस तरफ़ जा रहे थे। मुझे पिताजी पास वाले मोहल्ले की तरफ़ जाते दिखे। मैं पिताजी के पीछे दौड़कर थोड़ी दुरी पर पहुँचा फिर धीरे-से उनका पीछा करने लगा।
५ मिनट बाद, पिताजी ने पास वाले मोहल्ले के आखिरी घर के कंपाउंड के अंदर छलाँग लगा दिया था। मैं कंपाउंड की दीवार से छिपकर देखने लगा। पिताजी घर के पीछे वाले दरवाज़े के पास खड़े थे।
दरवाज़ा खुल गया और अंदर से एक जवान भाभी बाहर निकली। फिर पिताजी और भाभी, लोहे की सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर वाले मकान की तरफ़ जाने लगे थे। पिताजी भाभी के पीछे चढ़ रहे थे।
उन्होंने भाभी की नाईट गाउन के अंदर अपना हाथ घुसाकर भाभी की गाँड़ पर रख दिया। उन दोनों के अंदर जाने के बाद, मैं कंपाउंड में घुस गया और लोहे की सीढ़ियों पर दबे पाँव चढ़ने लगा।
कमरे की खिड़की के पास खड़े रहकर मैं अंदर झाँकने लगा। अंदर छोटे-से कमरे के बिच में एक बिस्तर था, बिस्तर के पास एक दरवाज़ा था जिसके सामने पिताजी खड़े होकर बातें कर रहे थे।
[पिताजी:] अरे मेरी जानेमन, मेरे आने से पहले टट्टी-पेशाब नहीं कर सकती थी क्या? मेरा लौड़ा तेरी रसीले चूत के अंदर घुसने को तड़प रहा है। जल्दी आओ न!
अंदर से भाभी की आवाज़ आती है।
[भाभी:] ज़रा सब्र करो मेरे राजा। अगर सीढ़ियाँ चढ़ते वक़्त तुम मेरी गाँड़ की छेद में उँगली नहीं घुसाते तो मुझे प्रेशर नहीं आता। मेरे बाहर आने तक उस उँगली को चाटो तुम।
पिताजी अपनी उँगली चाटते हुए।
[पिताजी:] तू बाहर आ बस। आज तो मैं तेरा पेशाब निकलने तक चुदाई करूँगा। अपनी गाँड़ मत धोना, मैं अपनी थूक लगाकर उसे साफ़ कर दूँगा।
कुछ देर बाद, भाभी ने टॉयलेट का दरवाज़ा खोला। पिताजी ने भाभी को टॉयलेट के अंदर से ही उठाया और उसे बिस्तर पर फेंक दिया। बिस्तर पर गिरते ही, भाभी का नाईट गाउन ऊपर सरक गया और उसके बारीक झाँटों वाली भूरी चूत के दर्शन हो गए।
पिताजी अपनी लूँगी उतारकर भाभी के ऊपर कूद पड़े थे। उनके गोल-मटोल लटकते हुए स्तनों को दबोचकर उन्हें दबाने लगे। भाभी पिताजी की होठों को चूसकर उनकी चुम्मियाँ ले रही थी।
उन दोनों को देखकर लग रहा था मानो कोई प्रेमी-प्रेमिका बहुत दिनों बाद चुदाई कर रहे हों। पिताजी ने भाभी की नाईट गाउन को उतार फेंका और उसे अपने ऊपर चढ़ा लिया। भाभी की मोटी भूरी गाँड़ की दरार में उँगलियाँ फसाकर पिताजी उसे दबाने लगे।
भाभी अपने हाथ को निचे ले जाकर पिताजी के मोटे काले लौड़े को हिलाने लगी। दोनों एक दूसरे के होठों को चूस रहे थे।
पिताजी ने भाभी की गाँड़ की छेद में अपनी बिच वाली उँगली घुसा दी और उसे अंदर-बाहर करने लगे।
भाभी सिसकियाँ लेकर पिताजी के पूरे चहरे की चुंबन ले रही थी। पिताजी ने अपनी बिच वाली उँगली को भाभी की गाँड़ की छेद से निकालकर अपने मुँह में भर दिया। उसके बाद उसी उँगली को भाभी के मुँह में भी भर दिया।
[पिताजी:] चल मेरी जानेमन, बैठ जा मेरे मुँह पर। तेरी गाँड़ को चाटकर साफ़ कर देता हुँ।
भाभी उठकर पिताजी के मुँह पर अपनी चौड़ी गाँड़ को रखकर बैठ गई। उसने पहले अपनी गाँड़ को पिताजी के चहरे पर रगड़ना शुरू किया।
पिताजी ने उत्साहित होकर भाभी के चुत्तड़ों को पकड़ लिया और उन्हें फैलाकर अपनी ज़ुबान को उसकी गाँड़ की छेद के अंदर घुसाने लगे। भाभी पिताजी के मुँह पर अपनी बड़ी गाँड़ को उछालकर पटकने लगी थी।
[भाभी:] हम्म! ऐसे ही चाटते रहो मेरे राजा। अपनी ज़ुबान को पूरा अंदर तक लेकर जाओ। मेरी चूत भी गीली करो अपनी उँगली घुसाकर।
पिताजी ने अपनी उँगलियों से भाभी की चूत की पंखुड़ियों को फैलाना शुरू किया। भाभी की चूत को खोलकर वह अपनी उँगली चूत पर रगड़ने लगे थे। भाभी पिताजी का खड़ा हुआ लौड़ा देखकर आगे झुक गई।
उसे अपने मुँह में घुसाकर अच्छे से चूसने लगी। थोड़ी देर के बाद, भाभी पिताजी के ऊपर चढ़कर लेट गई। अपने हाथों से पिताजी के लौड़े को पकड़कर उसे अपनी चूत पर रगड़ा और फिर अंदर घुसा दिया।
पिताजी भाभी की गाँड़ को पकड़कर उसे अपने लौड़े पर ऊपर-निचे उछालने लगे। भाभी की मोटी गाँड़ जब पिताजी के पैरों से टकराती थी, तब ‘पच-पच’ करके आवाज़ आ रही थी।
उसकी गाँड़ की छेद भी खुल गई थी जिसे पिताजी ने कुछ देर बाद अपनी उँगली घुसाकर बंद कर दिया। ज़ोर-ज़ोर से पिताजी भाभी को अपने लौड़े पर उछालने लगे जिससे भाभी चिल्लाकर अपने उत्साह को जताने लगी थी।
[भाभी:] और ज़ोर से चोदो मुझे मेरे राजा। मेरी भूरी चूत का काला भोसड़ा बना दो, आह!
कुछ देर तक पिताजी भाभी की ज़ोर-ज़ोर से चुदाई करते रहे और फिर रुक गए। पिताजी ने उठकर भाभी को अपने गोद में बिठा लिया और उसकी गाँड़ को पकड़कर अपने लौड़े पर पटकने लगे थे।
भाभी के मोटे और लटकते स्तन पिताजी की छाती से टकरा रहे थे। पिताजी और भाभी एक दूसरे की ज़ुबान बाहर निकालकर चाटने लगे। कुछ देर बाद, पिताजी ने भाभी को घोड़ी बनाकर बिस्तर पर लेटा दिया था। भाभी अपनी गाँड़ को हिलाने लगी थी।
[पिताजी:] हिला अपनी मोटी गाँड़ को ज़ोर-ज़ोर से। चल मेरी रानी, अब तेरी गाँड़ चोदने दे मुझे।
पिताजी ने भाभी की हिलती हुई गाँड़ को देखकर उसपर २-३ थप्पड़ मारकर उसके चीख़ें निकाल दिए। पिताजी ने भाभी की गाँड़ की छेद पर अपने लौड़े की नोक को रखा और धीरे से धक्का मारकर उसे अंदर घुसा दिया।
धीरे-धीरे धक्के मारते हुए पिताजी भाभी की गाँड़ को चोद रहे थे। भाभी की ज़ोर-ज़ोर से गाँड़ चोदते वक़्त पिताजी उसकी चूत को अपनी उँगलियों से रगड़ रहे थे।
गाँड़ के अंदर घुसते लौड़े ने भाभी की हवस को इतना बढ़ा दिया था कि भाभी की चूत से चिपचिपा पानी पिताजी की हथेली पर निकल गया। पिताजी की हथेली को भाभी ने पकड़कर चाटना शुरू किया।
कुछ देर बाद, पिताजी भाभी की कमर को पकड़कर धीरे से अपने लौड़े को उसकी गाँड़ के अंदर-बाहर कर रहे थे।
[पिताजी:] तेरा तो पता नहीं, लेकिन मेरा पेशाब निकलने वाला है तेरी गाँड़ के अंदर।
इतना बोलकर पिताजी ने अपने लौड़े को भाभी की गाँड़ के अंदर कुछ देर दबाकर रखा। जैसे ही पिताजी ने अपना लौड़ा बाहर निकाला, भाभी ने अपनी गाँड़ की छेद से पानी की धार छोड़ दी।
पेशाब का पानी पिताजी के लौड़े पर लगकर बिस्तर पर गिर गया था। पेशाब की धार को अपनी गाँड़ से निकालते वक़्त भाभी ज़ोर से चीख़ी थी।
[भाभी:] अब ज़रा मेरी चूत में थोड़ी देर लौड़ा घुसाओ मेरे राजा। मेरा भी पेशाब निकाल दो।
पिताजी अपने लौड़े को भाभी की फैली हुई चूत के अंदर घुसाकर उसकी चुदाई करने लगे थे। फिर आगे झुककर भाभी के उछलते स्तनों को पकड़कर उन्हें दबाने लगे।
पिताजी ज़ोर-ज़ोर से भाभी की चूत पर अपने लौड़े को पटक रहे थे। भाभी चिल्लाकर पिताजी को उकसाह रही थी।
[भाभी:] ऐसे ही ज़ोर से चोदते रहो मेरी चूत को। बस अब मेरा भी पेशाब निकलने वाला है। आह! आह! अच्छे से चोदो मुझे मेरे राजा।
कुछ समय और भाभी की चुदाई करने के बाद पिताजी ने अपना लौड़ा भाभी की चूत से निकाल दिया। भाभी के पैर काँपने लगे थे और तभी उसने पेशाब की तेज़ धार अपनी चूत से निकाल दी। सारा पानी बिस्तर पर गिर गया था।
थोड़ी देर बाद, भाभी मुड़कर पिताजी के लौड़े को चूसने लगी थी। ज़ोर-ज़ोर से पिताजी का लौड़ा अपने मुँह के अंदर-बाहर करने लगी थी। पिताजी ने भाभी का सर पकड़कर उसके मुँह के अंदर अपने लौड़े का माल निकाल दिया था।
भाभी पूरे माल को निगल गई थी। थकान के मारे दोनों लोग एक दूसरे के पेशाब से गीले हुए बिस्तर पर लेट गए थे। अगले दिन फिर पिताजी सुबह घर से निकल गए थे। अगले दिन भी मैंने उनका पीछा किया था।
इस बार पिताजी लोहे की सीढ़ियाँ चढ़कर सीधे ऊपर वाले मकान में गए। खिड़की से कुछ देखकर वह निचे उतर गए और गर्दन झुकाकर घर की ओर चलने लगे। पिताजी ने ऐसा क्या देख लिया था वह जानने के लिए मैं सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर गया।
मैंने देखा कि अंदर भाभी किसी दूसरे मर्द के साथ चुदाई के मज़े ले रही थी। शायद वह उसका पति होगा क्यूँकि भाभी के गले पर मंगलसूत्र था। दूसरे दिन मैं खुद को रोक नहीं पाया और अपने तनकर खड़े हुए लौड़े को भाभी की चुदाई देखकर हिलाना शुरू कर दिया था।
मैंने अपने लौड़े का पानी दरवाज़े के पास ही निकाल दिया था।