हेलो फ्रेंड्स, मेरा नाम रेणुका त्रिवेदी (उम्र २०) है। मैंने अपनी पहली कामुक कहानी आप लोगों को पेश किया है। उम्मीद करती हूँ कि आप लोग मेरी कहानी पढ़ने के बाद यौन रूप से संतुष्ट थे।
यह कहानी की घटना मेरे गाँव में घटी थी और कहानी के पात्र मेरी मौसी आंचल और हमारे गाँव का दर्ज़ी हीरालाल काका हैं। कुछ हफ़्ते पहले, मैं अपने परिवार वालों के साथ गाँव गई थी।
हमारे दादाजी ने गाँव की जमीन बेच दी थी और अपने बच्चों के बीच वह पैसा बांटना चाहते थे। घर में अच्छा माहौल और अवसर होने की वज़ह से दादाजी ने गाँव के एक मशहूर दर्ज़ी हीरालाल काका को घर बुलाया था।
हीरालाल काका को एक-एक करके सब अपना नाप देकर अपने पसंद का डिज़ाइन उन्हें बताने लगे। मैंने इस बात पर गौर किया कि जब आंचल मौसी की बारी आई, तब हीरालाल काका ने उसका नाप लिए बग़ैर उसके कपड़े का साइज़ अपनी डायरी में लिख लिया था।
सभी अपने काम में व्यस्त थे, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया था। मैंने भी उस बात पर ज़्यादा सोच-विचार न करते हुए, उस बात को भूल गई। २ दिन बाद, हीरालाल काका का फ़ोन-कॉल आया था कि कपड़े बनकर तैयार हैं।
हम सब उनकी दूकान पर चले गए और कपड़े पहनकर फ़िटिंग ठीक है कि नहीं उसकी जाँच करने लगे। लगभग सभी के कपड़ों में फिटिंग की थोड़ी प्रॉब्लम थी, सिवाय आंचल मौसी के। हीरालाल काका ने अगले दिन आकर कपड़े ले जाने के लिए कहा और हम सब घर चले आए।
अगले दिन, आंचल मौसी ने सबसे कह दिया था कि उसको बाहर और भी कुछ काम था, इसलिए वह कपड़े लेने ख़ुद जाएगी। मैंने देखा कि आंचल मौसी के चेहरे पर मस्ती वाली ख़ुशी झलक रही थी।
मुझे दाल में कुछ काला नज़र आ रहा था, इसलिए मैंने आंचल मौसी का थोड़ी देर बाद पीछा किया। शहर में रहने वाली आंचल मौसी को गाँव में ऐसा क्या काम था, वह देखने की उत्सुकता मुझमें बढ़ती जा रही थी।
आंचल मौसी खेत की तरफ़ जा रही थी और मुझे वह देखकर हैरानी हो रही थी। वह खेत के अंदर घुसकर दूसरी ओर चल रही थी। थोड़ी दूर जाकर, वह रूक गई और इंतज़ार करने लगी। खेत की दूसरी तरफ़ से हीरालाल काका आ रहे थे।
कपड़े देने की यह जग़ह मुझे अजीब लग रही थी। हीरालाल काका और आंचल मौसी इधर-उधर देखकर आगे चले गए। रास्ता खुला था, इसलिए मैं तुरंत उन दोनों का पीछा नहीं कर पाई।
काफ़ी देर से मैं उन दोनों को ढूँढ रही थी, लेकिन वह दोनों कहीं पर भी नहीं दिखे और थोड़ा आगे चलकर जाने पर मुझे एक छोटा-सा रास्ता दिखा। मैं दबे पाँव चलकर चल रही थी कि तभी मुझे एक औरत कि सिसकियों की आवाज़ आने लगी थी।
मैंने आगे चलकर देखा कि हीरालाल काका आंचल मौसी की मैक्सी के अंदर हाथ घुसाकर उसकी चूत रगड़ रहे थे। आंचल मौसी इसलिए सिसकियाँ ले रही थी। उसने काका को मस्ती में धक्का मारकर उनसे दूर भागने लगी।
काका भी आगे दौड़ पड़े और आंचल मौसी की कमर पकड़कर उसे अपनी तरफ़ खींच लिया। हीरालाल काका ने अपने लौड़े को आंचल मौसी की गाँड़ से चिपकाकर उसे उठा लिया। आंचल मौसी को झाड़ के पास ले जाकर उसे अपनी तरफ़ घुमा दिया।
हीरालाल काका ने आंचल मौसी को पकड़कर अपनी बाहों में भर लिया और उसकी चुम्मियाँ लेने लगे। आंचल मौसी को उसकी गाँड़ से पकड़कर हीरालाल काका ने उसे उठा लिया और उसके होंठों को अपने मुँह में भरकर चुमना जारी रखा।
आंचल मौसी ने अपनी मैक्सी उतारकर अपनी गोल-मटोल चूचियों को हीरालाल काका की छाती पर दबाने लगी। थोड़ी देर बाद, हीरालाल काका ने आंचल मौसी को नीचे उतार दिया और अपनी पैंट की ज़िप खोलकर अपने लौड़े को बाहर निकाल दिया।
आंचल मौसी हीरालाल काका के लौड़े को पकड़कर हिलाने लगी। जब उनका लौड़ा पूरी तरह तनकर खड़ा हो गया था, तब आंचल मौसी ने उसे अपने मुँह में ड़ालकर चूसना शुरू किया। वह पैरों के बल बैठकर हीरालाल काका के लौड़े को चूस रही थी।
हीरालाल काका आंचल मौसी का चेहरा पकड़कर उसके मुँह में अपना लौड़ा अंदर-बाहर घुसा रहे थे। आंचल मौसी हीरालाल काका की पैंट को नीचे उतारकर उनकी गोटियों को चूसने लगी थी। हीरालाल काका अपनी आँखें बंद करके मज़े ले रहे थे।
थोड़ी देर बाद, आंचल मौसी खड़ी हो गई और अपनी चड्डी उतारने लगी। लाल चड्डी में उसकी मोटी गाँड़ देखकर हीरालाल काका उत्तेजित हो गए थे। आंचल मौसी की गाँड़ को पकड़कर हीरालाल काका ने उसे अपनी तरफ़ खींच लिया।
उसकी गाँड़ को दबाते हुए हीरालाल काका उसकी चुम्मियाँ ले रहे थे। आंचल मौसी की गाँड़ की दरार में अपनी उँगली फ़साकर हीरालाल काका ने उसके चुत्तड़ को फ़ैलाना शुरू किया।
कुछ देर तक उसकी गाँड़ की छेद में उँगली घुसाने के बाद, हीरालाल काका ने आंचल मौसी को फिरसे उसकी गाँड़ से पकड़कर उठा लिया था। आंचल मौसी ने हीरालाल काका का खड़ा हुआ लौड़ा पकड़ा और उसे अपनी चूत पर घिसना शुरू किया।
उसने लौड़े को अपनी चूत के अंदर धीरे से घुसा दिया और अपनी चूचियों को पकड़कर हीरालाल काका के मुँह पर घिसने लगी। हीरालाल काका आंचल मौसी की गाँड़ पकड़कर उसे अपने लौड़े पर उछाल रहे थे।
उनका मोटा और लम्बा लौड़ा आंचल मौसी की चूत फाड़कर पूरा अंदर घुस गया था। उसकी गाँड़ में उँगली डालकर उसे भी अंदर-बाहर कर रहे थे। आंचल मौसी बारी-बारी से अपने चूचियों को हीरालाल काका के मुँह में घुसाकर उन्हें चुसवा रही थी।
हीरालाल काका आंचल मौसी को अपने लौड़े पर इतनी ज़ोर से पटककर उसकी चूत मार रहे थे कि ‘फट-फट’ आवाज़ आने लगी थी। आंचल मौसी सिसकियाँ लेकर हीरालाल काका को उकसाह रही थी।
हीरालाल काका तेज़ी से आंचल मौसी के चूत में अपना लौड़ा घुसाकर उसे ऊपर-निचे उछाल रहे थे। कुछ देर बाद, हीरालाल काका ने अपना लौड़ा आंचल मौसी की चूत से निकाल दिया। आंचल मौसी अपनी उँगली चाटकर अपनी गाँड़ की छेद को चौड़ा कर रही थी।
उसने हीरालाल काका का लौड़ा पकड़कर उसकी नोक को अपनी गाँड़ की छेद पर रख दिया। धीरे-धीरे ज़ोर ड़ालते हुए, हीरालाल काका ने अपना लौड़ा आंचल मौसी की गाँड़ में घुसा दिया।
अब हीरालाल काका आंचल मौसी के चुत्तड़ फैलाकर उसकी गाँड़ की छेद में अपना लौड़ा अंदर-बाहर कर रहे थे। आंचल मौसी की हलकी-हलकी चीख़े निकलने लगी थी। कोई उसकी आवाज़ न सुन ले इसलिए हीरालाल काका ने उसके होठों को अपने मुँह में भर दिया।
आंचल मौसी के होठों को चूसते हुए हीरालाल काका ज़ोर-ज़ोर से उसकी गाँड़ की चुदाई करने लगे। कुछ देर बाद, हीरालाल काका ने आंचल मौसी को अपने ऊपर से उतार दिया। आंचल मौसी पैरों के बल नीचे बैठकर हीरालाल काका के लौड़े को अपने मुँह में ड़ालकर चूसने लगी थी।
अपनी उँगलियों से वह अपनी चूत की पंखुड़ियाँ फैलाकर उसमें उँगली घुसाने लगी। कुछ देर तक उँगली घुसाने के बाद, आंचल मौसी उठकर खड़ी हो गई और हीरालाल काका से कहने लगी। “रुको ज़रा मैं पेशाब करके आई” ।
आंचल मौसी पास में जाकर पेशाब करने पैर के बल नीचे बैठ गई। उसकी चूत से पेशाब की धार निकलते देख, हीरालाल काका बावले हो गए थे। वह जाकर आंचल मौसी के पीछे बैठ गए और अपनी हथेली को उसकी गाँड़ की दरार के बिच रगड़ने लगे।
पेशाब करने के बाद, आंचल मौसी पेड़ को पकड़कर खड़ी हो गई। वह अपनी मोटी गाँड़ हिलाकर हीरालाल काका को उकसाह रही थी। हीरालाल काका ने आंचल मौसी की गाँड़ पर २-३ थप्पड़ मारे और नीचे झुककर उसकी गाँड़ को चाटने लगे।
आंचल मौसी की गाँड़ की छेद को थूक लगाकर उसमें अपनी ज़ुबान घुसाने लगे। उत्तेजना के मारे आंचल मौसी अपनी गाँड़ ज़ोर-ज़ोर से काका के चेहरे पर घिसने लगी थी। हीरालाल काका खड़े हो गए और अपने लौड़े की नोक को आंचल मौसी की गाँड़ की छेद के पास ले जाकर चिपका दिया।
आंचल मौसी की कमर पकड़कर हीरालाल काका उसकी गाँड़ की छेड़ में अपना लौड़ा घुसाने लगे थे। ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारते हुए, हीरालाल काका आंचल मौसी की मज़ेदार चुदाई कर रहे थे।
आगे से उसकी चूचियाँ पकड़कर उन्हें दबाने लगे, जिसके कारण आंचल मौसी की चीख़ें निकलनी शुरू हो गई थी। हीरालाल काका ने अपने हाथ को आंचल मौसी के मुँह पर रख दिया और ज़ोर-ज़ोर से उसकी गाँड़ में लौड़ा घुसाना जारी रखा।
हीरालाल काका अपने लौड़े को आंचल मौसी की गाँड़ की छेड़ में घुसाते हुए उसकी ज़ोर-ज़ोर से ठुकाई कर रहे थे। कुछ देर बाद, हीरालाल काका ने अपने लौड़े को आंचल मौसी की गाँड़ के अंदर दबा दिया।
अपने लौड़े के माल को आंचल मौसी की गाँड़ की छेद के अंदर निकालकर हीरालाल काका ने अपना लौड़ा बाहर निकाल लिया। हीरालाल काका नीचे झुककर आंचल मौसी की गाँड़ की छेद के पास अपना मुँह रखकर बैठ गए।
आंचल मौसी ने ज़ोर लगाकर अपनी गाँड़ की छेद से लौड़े का माल हीरालाल काका के मुँह में निकाल दिया। उसकी गाँड़ की छेद को अपनी ज़ुबान से चाटते हुए अचानक हीरालाल काका अपनी छाती पकड़कर ज़मीन पर गिर पड़े।
उनको दिल का दौरा पड़ा था। उस उम्र में अगर वैसी ज़ोरदार चुदाई करेंगे, तो दौरा तो पड़ना ही था। आंचल मौसी घबराकर अपने कपड़े उठाकर वहाँ से नंगी ही भाग निकली थी। मैं भी बिना रुके वहाँ पर से चली गई। आँचल मौसी उसी दिन अपना सामान बांधकर शहर निकल गई थी।