सभी पाठकों को मेरा नमस्कार। “मेरा पति सेक्स का भूखा है और उसे रात में मेरी चुदाई किए बगैर नींद नहीं आती है” । यह बात हमारे पड़ोस में रहने वाली आंटी ने मेरी माँ से कही थी। आंटी मेरी माँ के साथ शाम को गप्पे लड़ाने हमारे घर आती है।
इधर-उधर की बातें करते समय उसने वह बात बोली थी। एक बार हुआ यूँ कि आंटी को अपने मायके अचानक से जाना पड़ा। उस समय मेरी माँ ने पड़ोसी धर्म निभाते हुए हमारे पड़ोसी के लिए रात का खाना तैयार करने की ज़िम्मेदारी ली थी।
रात को ०८: ०० बजे, मैं और माँ साथ में हमारे पड़ोसी के घर जाकर उसे टिफ़िन देकर आते थे। पहले ३ दिन, हम दोनों पड़ोसी के घर जाकर उसे टिफ़िन देकर २-३ मिनट से ज़्यादा रुके बिना निकल गए थे।
चौथे दिन, हमारे पडोसी ने माँ से कुछ ज़रूरी बात करने के लिए हमे अंदर बुला लिया था। हम दोनों घर के अंदर जाकर सोफ़ा पर बैठ गए और अंकल अपनी बात बताने लगे।
उन्होंने माँ से कहा कि उनकी बीवी को उससे कुछ बात करनी थी, लेकिन वह बात फ़ोन पर नहीं बल्कि वीडियो कॉल से करनी थी। माँ ने हाँ कहा और हम तीनों अंकल के बेड़रूम में चले गए थे।
कंप्यूटर पर अंकल बहुत वक़्त से कुछ कर रहे थे, लेकिन वीडियो कॉल कनेक्ट नहीं हो रहा था। उन्होंने माँ से कहा कि शायद कुछ तकनीकी ख़राबी होने की वज़ह से देरी हो रही है। माँ ने घड़ी देखकर मुझे घर जाकर पिताजी का इंतज़ार करने को कहा।
मुझे अंकल के इरादे ठीक नहीं लग रहे थे इसलिए मैंने बाहर का दरवाज़ा खोलकर बंद कर दिया और दबे पाँव बेड़रूम के पास आकर खड़ी हो गई। अंदर मैंने अंकल और माँ के बिच में हुई यह बातचीत सुनी थी।
[अंकल:] देखिए, बात दरअसल कुछ और है, इसलिए मैंने आपकी बेटी के सामने नहीं बताया। मुझे आपकी थोड़ी मदत चाहिए. आप एक औरत हैं, इसलिए आप मेरा काम अच्छे से कर सकती हैं।
[माँ:] मैं आपकी मदत ज़रूर करूँगी। कहिए, क्या बात है।
[अंकल:] मैंने अपनी बीवी के लिए एक डिज़ाइनर ब्रा और पैंटी ख़रीदी है, लेकिन मुझे पक्का मालुम नहीं कि वह इन्हें पहन पाएगी की नहीं। मैंने इन्हें जिससे ख़रीदा है वह कल ही शहर छोड़कर कही जा रहा है। अगर यह ब्रा और पैंटी बराबर नहीं निकले तो मेरा बहुत नुकसान हो जाएगा।
माँ डिज़ाइनर ब्रा और पैंटी देखकर उलझन में पड़ गई थी। वह अपने पेट पर हाथ रखकर लम्बी साँसे लेने लगी थी। उसने अंकल के हाथ से ब्रा और पैंटी उठा लिया और ध्यान से देखने लग गई।
[अंकल:] आप इन्हें पहनकर इनकी फिटिंग बराबर है या नहीं मुझे बता दो।
माँ बाथरूम में से ब्रा-पैंटी पहनकर निकली और अंकल के सामने आकर कड़ी हो गई थी। ब्रा और पैंटी पारदर्शी होने की वज़ह से माँ की गोल-मटोल चूचियाँ और काली निप्पल दिखाई दे रही थी।
पैंटी में से उसके झाँटो से भरी चूत दिखाई दे रही थी। माँ अंकल से सामने अपने हाथ उठाकर कामुक पोज़ में खड़ी हो गई।
[माँ:] तुम्हारी एक्टिंग का भूत अगर उतर गया हो तो क्या मेरी जल्दी-से चुदाई करोगे?
दोस्तो, दरअसल यह मेरे पिताजी का अनोखा शौक़ है। अपनी १५ साल की शादी को मज़ेदार बनाने के लिए वह ऐसा खेल खेलते है। मैंने कहानी की शुरुवात अलग तरह से की क्यूँकि मुझे अपने पिताजी के अनोखे शौक़ के बारे में आप लोगों को बताना था।
आगे की चुदाई कहानी आप मज़े से पढ़े।
पिताजी ने माँ को उठाकर बिस्तर पर फेंक दिया और उसके ऊपर चढ़कर उसकी चुम्मियाँ लेने लगे।
[पिताजी:] माफ़ करना जानेमन लेकिन आजकल मेरा लौड़ा ऐसा खेल खेलकर ही खड़ा होता है।
पिताजी ने माँ की डिज़ाइनर ब्रा और पैंटी को उतार फेंका और उसे अपने ऊपर चढ़ा लिया। माँ की मोटी गोरी गाँड़ की दरार में उँगलियाँ फसाकर पिताजी उसे मसलने लगे।
माँ अपने हाथ को निचे ले जाकर पिताजी के लौड़े को हिलाने लगी। दोनों एक दूसरे के होठों को चूस रहे थे।
पिताजी ने माँ की गाँड़ की छेद में अपनी उँगली घुसा दी और उसे अंदर-बाहर करने लगे।
माँ सिसकियाँ लेकर पिताजी के पूरे चहरे की चुंबन ले रही थी। पिताजी ने अपनी बिच वाली उँगली को माँ की गाँड़ की छेद से निकालकर अपने मुँह में भर दिया। उसके बाद उसी उँगली को माँ के मुँह में भी भर दिया।
माँ उठकर पिताजी के मुँह पर अपनी गाँड़ को रखकर बैठ गई। उसने पहले अपनी गाँड़ को पिताजी के चहरे पर रगड़ना शुरू किया।
पिताजी ने उत्साहित होकर माँ की गाँड़ को पकड़ लिया और उसे फैलाकर अपनी ज़ुबान को उसकी गाँड़ की छेद के अंदर घुसाने लगे। माँ पिताजी के मुँह पर अपनी बड़ी गाँड़ को उछालकर पटकने लगी थी।
पिताजी ने अपनी उँगलियों से माँ की झाँटों से भरी चूत की पंखुड़ियों को फैलाना शुरू किया। माँ की चूत को खोलकर वह अपनी उँगली चूत पर रगड़ने लगे थे। माँ पिताजी का खड़ा हुआ लौड़ा देखकर आगे झुक गई।
उसे अपने मुँह में घुसाकर अच्छे से चूसने लगी। थोड़ी देर के बाद, माँ पिताजी के ऊपर चढ़कर लेट गई। अपने हाथों से पिताजी के लौड़े को पकड़कर उसे अपनी चूत पर रगड़ा और फिर अंदर घुसा दिया।
पिताजी माँ की गाँड़ को पकड़कर उसे अपने लौड़े पर ऊपर-निचे उछालने लगे। माँ की मोटी गाँड़ जब पिताजी के पैरों से टकराती थी, तब ‘पच-पच’ करके आवाज़ आ रही थी।
उसकी गाँड़ की छेद भी खुल गई थी जिसे पिताजी ने कुछ देर बाद अपनी उँगली घुसाकर बंद कर दिया। ज़ोर-ज़ोर से पिताजी माँ को अपने लौड़े पर उछालने लगे जिससे माँ चिल्लाकर अपने उत्साह को जताने लगी थी।
कुछ देर तक पिताजी माँ की ज़ोर-ज़ोर से चुदाई करते रहे और फिर रुक गए। पिताजी ने उठकर माँ को अपने गोद में बिठा लिया और उसकी गाँड़ को पकड़कर अपने लौड़े पर पटकने लगे थे।
माँ के मोटे और लटकते स्तन पिताजी की छाती से टकरा रहे थे। पिताजी और माँ एक दूसरे की ज़ुबान बाहर निकालकर चाटने लगे। कुछ देर बाद, पिताजी ने माँ को घोड़ी बनाकर बिस्तर पर लेटा दिया था। माँ अपनी गाँड़ को हिलाने लगी थी।
पिताजी ने माँ की हिलती हुई गाँड़ को देखकर उसे थप्पड़ मारकर उसके चीख़ें निकाल दिए। पिताजी ने माँ की गाँड़ की छेद पर अपने लौड़े की नोक को रखा और धीरे से धक्का मारकर उसे अंदर घुसा दिया।
धीरे-धीरे धक्के मारते हुए पिताजी माँ की गाँड़ को चोद रहे थे। माँ की ज़ोर-ज़ोर से गाँड़ चोदते वक़्त पिताजी उसकी चूत को अपनी उँगलियों से रगड़ रहे थे।
गाँड़ के अंदर घुसते लौड़े ने माँ की हवस को इतना बढ़ा दिया था कि माँ की चूत से चिपचिपा पानी पिताजी की हथेली पर निकल गया। पिताजी की हथेली को माँ ने पकड़कर चाटना शुरू किया।
कुछ देर बाद, पिताजी माँ की कमर को पकड़कर धीरे से अपने लौड़े को उसकी गाँड़ के अंदर-बाहर कर रहे थे।
पिताजी ने अपने लौड़े को माँ की गाँड़ के अंदर कुछ देर दबाकर रखा। जैसे ही पिताजी ने अपना लौड़ा बाहर निकाला, माँ ने अपनी गाँड़ की छेद से पानी की धार छोड़ दी।
चिपचिपे पानी की धार पिताजी के लौड़े पर लगकर बिस्तर पर गिर गया था। चिपचिपे पानी की धार को अपनी गाँड़ से निकालते वक़्त माँ ज़ोर से चीख़ी थी।
पिताजी अपने लौड़े को माँ की फैली हुई चूत के अंदर घुसाकर उसकी चुदाई करने लगे थे। फिर आगे झुककर माँ के उछलते चूचियों को पकड़कर उन्हें दबाने लगे।
पिताजी ज़ोर-ज़ोर से माँ की चूत पर अपने लौड़े को पटक रहे थे। माँ चिल्लाकर पिताजी को उकसाह रही थी।
कुछ समय और माँ की चुदाई करने के बाद पिताजी ने अपना लौड़ा माँ की चूत से निकाल दिया। माँ के पैर काँपने लगे थे और तभी उसने पेशाब की तेज़ धार अपनी चूत से निकाल दी। सारा पानी बिस्तर पर गिर गया था।
थोड़ी देर बाद, माँ मुड़कर पिताजी के लौड़े को चूसने लगी थी। ज़ोर-ज़ोर से पिताजी का लौड़ा अपने मुँह के अंदर-बाहर करने लगी थी। पिताजी ने माँ का सर पकड़कर उसके मुँह के अंदर अपने लौड़े का माल निकाल दिया था।
[माँ:] अगर किसी दिन सचमुच में हमारे पड़ोसी ने यह खेल खेला तो?
[पिताजी:] देखो मुझे अब बहुत नींद आ रही है। तुम सुबह यह सब बातें बोलकर मुझे उकसाना।
माँ-पिताजी का चुदाई का खेल ख़तम हुआ और वह दोनों सो गए। दोस्तो, मैंने इस कहानी को थोड़ा अलग तरीके है। मैंने माँ-पिताजी का खेल देख लिया था और सोचा कि उसे कहानी के रूप में आप लोगों को पेश करू।
उम्मीद करती हुँ कि आप लोगों को मेरी कहानी पढ़कर मज़ा आया।